किताब
तो सबसे पहले वह नोंच फेकेगी
कुर्सी में लगे मखमली कपड़ों को
बराबर करेगी कुर्सी के चारों पावों को
काट-छांटकर
और लगाएगी उन पावों में
न रुकने वाले पहिए
कलम को बनायेगी अपना निजी सहायक
और कागज को सुरक्षाकर्मी
जिनके हाथों में होगा एक-एक हल
कुर्सी के पहिए किताब को पहुंचाएंगे
हर गांव-शहर
और उसके सुरक्षाकर्मी
हाथों में लिए हल से
जोतेंगे खेत
और कहलाएंगे
हलधर
इतना सब सोचते हुए
अचानक याद आती है
एक बात कि
किताब कुर्सी पर नहीं
दिमाग में बैठती है
और किताब को दिमाग में
बैठाने वाला आदमी
कभी बैठ नहीं पाता
कुर्सी पर
Posted by Prakhar Sharma
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