देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएं
प्राचीन भारत में दो लिपियाँ प्रचलित थी - ब्राह्मी लिपि तथा खरोष्ठी । प्राचीन नागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ तथा प्राचीन नागरी लिपि के विकसित होने से ही आधुनिक नागरी या देवनागरी लिपि का विकास हुआ।
डा. कपिलदेव द्विवेदी वर्तमान देवनागरी लिपि का प्रारंभ सन् 1000 से 1200 ई. तक स्वीकार करते हैं।
देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
देवनागरी लिपि के ध्वनि और लिपि में एकरुपता देवनागरी लिपि में एक निश्चित ध्वनि के लिए एक निश्चित वर्ण का प्रयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि में यह गुण है कि इसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। जबकि रोमल और फारसी लिपियों में यह गुण नहीं पाया जाता है।
मूक अक्षरों का अभाव -
देवनागरी लिपि में ऐसा कोई अक्षर नहीं है जो लेखन में हो परन्तु उसका उच्चारण न होता हो। जैसे कि रोमन लिपि में देखा जाय तो ऐसे अनेक शब्द हैं जिनमें अक्षर वर्तमी में तो हैं परन्तु उच्चारण में नहीं। उदाहरणस्वरूप- Honest में H मूक अक्षर हैं। देवनागरी लिपि में ऐसी अव्यवस्था नहीं है।
लिपि की सुन्दरता -
देवनागरी लिपि में प्रत्येक अक्षर एकरुप तथा उनके अंग समानुपाती हैं। अक्षरों की सुन्दरता और सुडौलता कलात्मक दृष्टिकोण से देवनागरी लिपि को बहुत सुन्दर बना देती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर शिरोरेखा का प्रयोग इसके आकर्षण को दो गुना कर देता है।
वर्णमाला का वैज्ञानिक वर्गीकरण-
देवनागरी लिपि में स्वरों और व्यंजनों को वैज्ञानिक ढंग से क्रमबद्ध किया गया है। इसके साथ ही साथ देवनागरी लिपि में हस्व और दीर्घ मात्रा का स्पष्ट अंतर है। उदाहरण के लिए रोमन लिपि में 'A' अ आ के लिए तथा 'E' इ ई के लिए प्रयुक्त होता है जबकि देव नागरी लिपि में ऐसा नहीं है।
लेखन में सुविधाजनक -
देवनागरी लिपि बाईं से दाईं ओर लिखी जाती है। इस प्रकार लिखने में हाथ के संचालन में सुविधा होती है तथा देवनागरी लिपि में स्वरों के स्थान पर उनकी मात्राओं का प्रयोग किया जाता है जिससे शब्दों का आकार अपेक्षाकृत छोटा हो जाता है। देवनागरी लिपि की यह विशेषता इसे गत्यात्मक तथा व्यवहारोपयोगी बनाती है।
लिपि की सुपाठ्यता -
एक आदर्श लिपि में सुपाठ्यता का गुण होना चाहिए। डॉ. भोलानाथ तिवारी देवनागरी लिपि के इस गुण को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं - " इस दृष्टि से देवनागरी बहुत वैज्ञानिक लिपि है। रोमन की तरह उसमें "mal' मैल, मल या माल या Aghan को अघन, अगहन पढ़ने की परेशानी उठाने की संभावना ही नहीं है।
प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग लिपि चिह्न -
देवनागरी लिपि में लगभग प्रत्येक ध्वनि के लिए अलग लिपि चिह्न की व्यवस्था है। अन्य लिपियों में एक ध्वनि के लिए दो तीन लिपि चिह्नों का प्रयोग मिलता है उदाहरण के लिए रोमन लिपि में 'क' ध्वनि के लिए 'K, C, CH, Q' चार लिपि चिह्नों का प्रयोग होता है इसी प्रकार फारसी लिपि में भी 'स' ध्वनि के लिए ‘सीन, स्वाद और से' तीन लिपि चिन्हों का प्रयोग मिलता है।
स्वर का स्वतंत्र एवं मात्रा के रूप में प्रयोग -
देवनागरी लिपि में में स्वर का प्रयोग स्वर एवं माता दोनों रूपों में होता है। प्रत्येक व्यंजन में स्वर अप्रत्यक्ष रूप से समाए रहते हैं, यह देवनागरी लिपि की अपनी विशेषता है। जैसे देवनागरी लिपि 'क' में 'अ' की ध्वनि अलग से नहीं लिखी जा रही है जबकि रोमन में 'K' के साथ 'A' लिखना पड़ता है।
यान्त्रिक सुविधा -
देवनागरी लिपि मुद्रण एवं टंकण की दृष्टि से सरल एवं सुविधाजनक है। देवनागरी लिपि का यह गुण वर्तमान वैज्ञानिक युग की आवश्यकता के अनुरूप है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आदर्श लिपि की लगभग सभी विशेषताएँ देवनागरी लिपि में विद्यमान हैं। लिपियों के विशेषज्ञ एवं प्रसिद्ध विद्वान राय बहादुर गौरी शंकर हीराचन्द्र ओझा ने देवनागरी लिपि की विशेषताओं के सम्बन्ध में लिख है - “ हमारी वर्णमाला अद्भुत है। जितनी बारीकी के साथ स्वरों का अभ्यास हमारी वर्णमाला को बनाने में किया गया है। उतनी बारीकी और वैज्ञानिकता किसी दूसरी वर्णमाला में नहीं। जितनी प्रकार की ध्वनियाँ हैं सबके लिए अक्षर चाहिए और एक ध्वनि के लिए एक अक्षर होना चाहिए। यह गुण इस वर्णमाला में ही है और शायद किसी दूसरी वर्णमाला में नहीं है। यह चमत्कार कुछ अनजाने में ही नहीं हो गया । उस विद्या का विधिपूर्वक अभ्यास किया गया तभी वह इतनी परिपूर्ण और सुन्दर बन सकी।”
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